🙏 वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥
Previous
Previous Product Image

हनुमज्जन्मोत्सव

11,000.00
Next

जन्मोत्सव पूजा

11,000.00
Next Product Image

रुद्राभिषेक एवं शिवाराधन

11,000.00

Trust Badge Image

Description

रुद्राभिषेक क्या है?

रुद्राभिषेक एक महत्त्वपूर्ण पूजा विधि है जो विशेष रूप से भगवान शिव के रुद्र स्वरूप की पूजा के लिए की जाती है। यह पूजा भारतीय संस्कृति और परंपरा में न केवल धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि यह समाज में एक विशेष ऊर्जा का संचार भी करती है। रुद्राभिषेक का मुख्य उद्देश्य भगवान शिव की कृपा प्राप्त करना और जीवन में संतुलन, शांति तथा समृद्धि लाना होता है।

इस पूजा की प्रक्रिया में, विशेष रूप से रुद्र को समर्पित सामग्रियों जैसे जल, दूध, घी, चंदन, और पुष्पों का उपयोग किया जाता है। भक्त जन सामग्री को भगवान शिव के लिंग पर अर्पित करते हैं, जिससे रुद्र का आशीर्वाद प्राप्त होता है। यह प्रक्रिया ध्यान और भक्ति के माध्यम से की जाती है, ताकि व्यक्ति अपने मन और आत्मा को प्रगाढ़ बना सके। रुद्राभिषेक का महत्व न केवल बाह्य दृष्टिकोण से है, बल्कि आंतरिक स्थिति को भी सुधारने का कार्य करता है। यह भक्तों के लिए मानसिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा का स्रोत बनता है।

धार्मिक दृष्टिकोण से रुद्राभिषेक के अनेक लाभ हैं। यह पूजा मानसिक तनाव और चिंताओं को दूर करने में सहायक होती है। जब भक्त इस विशेष पूजा को करते हैं, तो यह उनके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने का कार्य करती है। भक्तों के साथ-साथ, यह विधि समग्र समुदाय के लिए भी शक्ति और समर्पण की भावना का संचार करती है। इस प्रकार, रुद्राभिषेक न केवल धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह सुरक्षा, उन्नति, और समग्र कल्याण का भी प्रतीक बन जाती है।

शिव पूजा का महत्व

भगवान शिव भारतीय धर्म में सर्वोच्च प्रमुखता रखते हैं। उनकी पूजा का महत्व इस तथ्य में निहित है कि वे केवल विनाश के देवता नहीं हैं, बल्कि संहार और सृजन के चक्र का एक आवश्यक हिस्सा हैं। शिव को विभिन्न रूपों में पूजा जाता है, जैसे कि नटराज, भैरव, और लिंगम, जो दर्शाते हैं कि वे जीवन के विभिन्न पहलुओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। भक्तों द्वारा पूजा करने से वे विशेष रूप से शांति और समर्पण का अनुभव करते हैं, जो उनके जीवन में एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है।

आध्यात्मिक दृष्टिकोण से, शिव पूजा व्यक्ति को उसके भीतर की शक्ति और ज्ञान को पहचानने में मदद करती है। भक्त जब शिव की आराधना करते हैं, तो वे केवल बाहरी पूजा नहीं करते, बल्कि अपने अंतर्मन में भी शिव के अस्तित्व को महसूस करते हैं। यह प्रक्रिया उन्हें स्वयं के प्रति अधिक संवेदनशील और धीरे-धीरे उच्च विचारों की ओर प्रेरित करती है। शिव की पूजा का एक अन्य मुख्य पहलू यह है कि यह भक्तों के जीवन से नकारात्मकता को दूर करने में मदद करती है, जिससे वे मानसिक शांति महसूस करते हैं।

शिव पूजा के लाभ केवल आध्यात्मिक नहीं हैं, बल्कि यह व्यक्ति के जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में भी सकारात्मकता लाती है। नियमित रूप से शिव की पूजा करने से मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है, संचित तनाव कम होता है, और अनेक बीमारियों से राहत मिलती है। इसके अलावा, भक्तों के लिए यह एक ऐसा साधन है जिसके द्वारा वे अपनी दैनिक परेशानियों को भुलाकर शांति और संतुलन प्राप्त कर सकते हैं। इस प्रकार, शिव पूजा न केवल धार्मिक क्रिया है, बल्कि इसे आध्यात्मिक विकास के एक माध्यम के रूप में भी देखा जा सकता है।

ऑनलाइन पूजा का महत्व

आधुनिक युग में, तकनीक ने भक्तों के लिए पूजा-अर्चना की पारंपरिक विधियों में क्रांतिकारी परिवर्तन किया है। ऑनलाइन पूजा की प्रक्रिया ने न केवल समय और स्थान की सीमाओं को समाप्त किया है, बल्कि भक्तों को अपने घरों से ही विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों, जैसे रुद्राभिषेक और शिव पूजा, का आनंद लेने की सुविधा भी प्रदान की है। इस डिजिटल युग में, भक्त अब अपने पसंदीदा मंदिरों या धार्मिक संस्थानों की सेवाओं का उपयोग कर सकते हैं और अपनी श्रद्धा के अनुसार पूजा में भाग ले सकते हैं।

ऑनलाइन पूजा का सबसे बड़ा लाभ यह है कि भक्ति की भावना को व्यक्त करने के लिए भक्तों को यात्रा करने की आवश्यकता नहीं होती। इस प्रकार, वे अपने कार्य और व्यक्तिगत जीवन के साथ एक सामंजस्य बना सकते हैं। इसके अलावा, इस प्रक्रिया का उपयोग करते हुए, भक्त कहीं से भी पूजा कर सकते हैं, चाहे वे शहर में हों या दूरदराज के क्षेत्र में। इससे सभी को एक समान अवसर मिलता है कि वे अपने आराध्य की पूजा कर सकें, जिससे धार्मिक गतिविधियों में समावेशीता बढ़ती है।

विश्वसनीयता भी ऑनलाइन पूजा का एक महत्वपूर्ण पहलू है। पेशेवर वेदिक ब्राह्मणों द्वारा किये जाने वाले अनुष्ठान सुनिश्चित करते हैं कि पूजा विधिपूर्वक और सही तरीके से की जा रही है। श्रद्धालु यह विश्वास कर सकते हैं कि सभी अनुष्ठान सटीक रूप से संपन्न हो रहे हैं, चाहे वह किसी विशेष तिथि या पर्व का अवसर हो। इस प्रक्रिया की आसान पहुंच ने भक्तों को उनकी धार्मिक आवश्यकताओं के अनुसार सही विकल्प चुनने में सहूलियत प्रदान की है। इस प्रकार, ऑनलाइन पूजा न केवल सरलता का प्रतीक है, बल्कि यह प्राचीन धार्मिक परंपराओं को भी आगे बढ़ाने का एक प्रभावशाली माध्यम बन गया है।

वैदिक विधानम् द्वारा पूजा सेवाएँ

वैदिक विधानम् एक अनूठा ऑनलाइन प्लेटफॉर्म है जो भक्तों को विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों और यथार्थ पूजाओं को संपन्न कराने का अवसर प्रदान करता है। यह सेवा भक्तों को धर्म एवं आध्यात्म से जुड़े विभिन्न अनुभवों का लाभ उठाने का अवसर देती है, जिसमें श्रद्धा और विश्वास की गहरी भावना शामिल होती है। इस वेबसाइट पर, भक्त न केवल विभिन्न पूजा विधियों के प्रति अपनी पसंद का चुनाव कर सकते हैं, बल्कि उन्हें एक सुनिश्चित और सत्यापित प्रक्रिया के माध्यम से पूजाएँ संपन्न करने का भी अवसर मिलता है।

वैदिक विधानम् पर कई प्रकार की पूजा विधियाँ उपलब्ध हैं, जैसे रुद्राभिषेक, शिवाराधन, होम, यज्ञ, और कई अन्य धार्मिक अनुष्ठान। इन विधियों के दौरान विशेष ध्यान रखा जाता है कि सभी पूजा सामग्री शुद्ध एवं प्रमाणित हो।

इस प्लेटफार्म पर कार्यरत विशेषज्ञ पंडितों की एक टीम है, जो न केवल वेदिक विधाओं में पारंगत हैं, बल्कि वे भक्तों की आस्था एवं आवश्यकताओं के प्रति भी सजग रहते हैं। ये पंडित व्यक्तिगत मार्गदर्शन प्रदान करते हैं, जिससे भक्तों को सही प्रकार से पूजा-अर्चना करने में सहायता मिलती है। इसके अलावा, वेबसाइट ने विभिन्न ग्राहकों के अनुभवों को साझा किया है, जिनमें भक्तों की संतुष्टि और विधाओं के प्रति उनकी सकारात्मक प्रतिक्रियाएँ शामिल हैं। ये अनुभव नए भक्तों को उनके धार्मिक यात्रा में प्रेरित करने का कार्य करते हैं।

रुद्राभिषेक और शिवाराधन के फायदे

रुद्राभिषेक और शिवाराधन हिन्दू धर्म में महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान हैं, जिनका उद्देश्य भक्तों को मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक संतोष प्रदान करना है। इन अनुष्ठानों का प्रभाव न केवल भौतिक जीवन पर बल्कि आत्मिक स्तर पर भी गहरा होता है। रुद्राभिषेक के दौरान भगवान शिव की विशेष महिमा के माध्यम से समर्पण, भक्ति और श्रद्धा का संचार होता है, जो मानसिक शांति का कारण बनता है।

मानसिक और भावात्मक स्वास्थ्य के संदर्भ में, रुद्राभिषेक के अनुष्ठान से मन को शांति और स्थिरता प्राप्त होती है। जब भक्त शिव की आराधना करते हैं, तो वे अपने दुखों और चिंताओं को भगवान के चरणों में अर्पित कर देते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि वे मानसिक तनाव और चिरकालिक समस्याओं से मुक्त होने लगते हैं। यह ध्यान और भक्ति का एक स्रोत है, जो जीवन में सकारात्मकता का संचार करता है।

इसके अलावा, रुद्राभिषेक केवल आध्यात्मिक फल नहीं लाता; यह शारीरिक स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी होता है। नियमित रूप से पूजा करने से व्यक्ति की इम्यूनिटी मजबूत होती है और स्वास्थ्य में सुधार होता है। शिवाराधन के दौरान प्रतिदिन विशेष साधना और ध्यान करने से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, जो जीवन में सकारात्मक बदलाव लाता है।

आध्यात्मिक दृष्टिकोण से, रुद्राभिषेक और शिवाराधन आत्मिक उन्नति के लिए एक मार्ग प्रशस्त करते हैं। ये अनुष्ठान भक्ति के साथ-साथ जीवन की चुनौतियों का सामना करने की शक्ति भी प्रदान करते हैं। नियमित पूजा अर्चना से भक्त स्वयं में सकारात्मकता का अनुभव करते हैं, जिससे जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है।

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “रुद्राभिषेक एवं शिवाराधन”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Benefits

रुद्राभिषेक एवं रुद्रपाठ का माहात्म्य:

  • अवढरदानी सदाशिव रुद्र का ‘शिवपुराण’ में रुद्राष्टाध्यायी की महत्ता को प्रकट करते हुए कहते हैं कि रुद्रपाठ पूर्वक जो अभिषेक करता है, उसकी समस्त कामनाएँ पूर्ण होती है।
  • भस्मधारण पूर्वक जो रुद्रपाठ करता है तथा जलादि से शिवाभिषेक करता है,  उसके समस्त रोग, क्लेश दूर हो जाते हैं तथा अद्वितीय सुख की प्राप्ति होती है।
  • समयाभाव के कारण जो कम समय मे अभिषेक करना चाहते हैं,उनके लिए शतरुद्रिय का विधान है। रुद्राष्टाध्यायी के ही सतुल्य शतरुद्रिय का माहात्म्य है। पंचम अध्याय को ही शतरुद्रिय कहा गया है, शतरुद्रिय का पाठ एवं जप वेदपारायण के समतुल्य माना गया है।
  • भगवान् वेदव्यास महाभारत के द्रोण पर्व में शतरुद्रिय की महिमा का प्रतिपादन करते हुए अर्जुन को बताते हैं- हे पार्थ ! वेदसम्मित शतरुद्रिय परम पुनीत तथा यश, धन, आयु, कीर्ति का विस्तारक है। इसके पाठ से समस्त मनोरथों की सिद्धि होती है। यह समस्त किल्विषों का नाशक, पापों का निवारक, समस्त दुःखों को दूर करने वाला है। जो सदा शतरुद्रिय को पढता और सुनता है तथा जो निरन्तर भगवान् विश्वनाथ का सेवन अर्चन एवं वन्दन करता है, वह समस्त उत्तम कामनाओं को प्राप्त कर लेता है।
  • अथर्ववेदीय जाबालोपनिषद् में महर्षि याज्ञवल्क्य जी ने शतरुद्रिय को अमृतत्व का साधन कहा है।
  • कृष्णयजुर्वेदीय कैवल्योपनिषद् में शतरुद्रिय को कैवल्य (मोक्ष) प्राप्ति का साधन बताया गया है।
  • लोकपितामह ब्रह्माजी ने महर्षि आश्वलायन से शतरुद्रिय की महिमा को प्रकट करते हुए कहते हैं— जो शतरुद्रिय का पाठ करता है, वह अग्नि एवं वायु के द्वारा पवित्र होता है।  सुरापान, ब्रह्महत्या, स्वर्णचोरी आदि पापों से मुक्त  होता है, वह भगवान् रुद्र के आश्रित रहते हुए अन्ततः मुक्ति को प्राप्त करता है।
  • रुद्राष्टाध्यायी के मन्त्रों से अभिषेक एवं शिवार्चन करने से कन्याओं को उत्तम एवं सर्वगुण सम्पन्न पति की प्राप्ति तथा पुरुषों द्वारा शिवार्चन करने से सुन्दर एवं सुशील पत्नी की प्राप्ति होती है।

रुद्रपाठ के भेद –

                शास्त्रों में रुद्रपाठ के पाँच प्रकार बताये गये हैं – रूपक या षडङ्ग‌पाठ, रुद्री या एकादशिनी, लघुरुद्र, महारुद्र तथा अतिरुद्र।

  1. रूपक या षडङ्गपाठ – समस्त रुद्राष्टाध्यायी में 10 अध्याय हैं। आठ में रुद्र महिमा नौवाँ शान्त्याध्याय तथा दसवाँ स्वस्ति प्रार्थना है। इस प्रकार दस अध्यायों की आवृत्ति (रूपक या षडङ्ग) पाठ कहलाता है।
  2. रुद्री या एकादशनी- षडङ्ग पाठ में नमकाध्याय (पञ्चम्) तथा चमकाध्याय (अष्टम्) को युक्तकर ग्यारह आवृत्ति को (रुद्री या एकादशिनी) कहते हैं।
  3. लघुरुद्र- एकादशिनी रुद्री की ग्यारह आवृत्तियों के पाठ को लघुरुद्र पाठ कहा जाता है। यह  लघुरुद्र अनुष्ठान, एक दिन में ग्यारह ब्राह्मणों का वरणकर एक साथ सम्पन्न कराया जा सकता है। अथवा एक ब्राह्मण द्वारा ग्यारह दिनों तक एकादशिनी पाठ नित्य करके लघुरुद्र की सम्पन्नता होती है।
  4. महारुद्र – लघुरुद्र की ग्यारह आवृत्ति अर्थात् एकादशिनी रुद्री का 121 आवृत्ति पाठ होने पर महारुद्र अनुष्ठान होता है। यह अनुष्ठान 11 ब्राह्मणों द्वारा ग्यारह दिनों में कराया जा सकता है। या ब्राह्मणों की संख्या बढ़ाकर 121 पाठ होने पर महारुद्र अनुष्ठान संपन्न होता है।
  5. अतिरुद्र – महारुद्र की ग्यारह आवृत्ति अर्थात् एकादशिनी रुद्री का 1331 आवृत्ति से अतिरुद्र अनुष्ठान सम्पन्न होता है।

नोट :  ये पाठ अनुष्ठानात्मक, अभिषेकात्मक तथा हवनात्मक तीनों प्रकार से किया जा सकता है।

विभिन्न कामनाओं की सिद्धि के लिए विभिन्न द्रव्यों का प्रयोग एवं  उनका फल –  यद्यपि निष्काम भाव से भगवान् के यजन एवं अभिषेक का अनन्तफल है, तथापि शास्त्रों में विभिन्न सङ्कल्पों की सिद्धि के लिए  अनेक द्रव्यों का निर्देश है – यथा –

  • ज्वरशान्ति ,कृपादृष्टि एवं जलवृष्टि की कामना के लिए जल से अभिषेक करें।
  • व्याधि (रोगों) की शान्ति के लिए कुशोदक से अभिषेक होता है।
  • पशु प्राप्ति के लिए दही से।धन एवं लक्ष्मी की कामना वालों को इक्षुरस (गन्ने का रस), मधु तथा घृत से भगवान् शिव का अभिषेक करें।
  • मोक्ष प्राप्ति की कामना वालों को तीर्थजल से अभिषेक करना चाहिए।
  • पुत्रप्राप्ति के इच्छुक, वन्ध्या, काकवन्ध्या (एकसन्तानवाली) मृतवत्सा (सन्तान उत्पन्न होने के बाद मर जाए) या जिसका मृत सन्तान उत्पन्न हो। इन सभी को गोदुग्ध या चीनी युक्त दूध के द्वारा अभिषेक करने से शीघ्र स्वस्थ एवं सुलक्षण पुत्र उत्पन्न होता है।
  • वंश विस्तार के लिए घृत से अभिषेक करें।
  • प्रमेह (शुगर) रोग की निवृत्ति के लिए दुग्ध धारा से अभिषेक करें।
  • प्रज्ञा प्राप्ति एवं बुद्धि की जड़ता को दूर करने के लिए चीनी युक्त दूध से अभिषेक करें।
  • शत्रु बुद्धि विनाश के लिए सरसों के तेल से अभिषेक करें।
  • यक्ष्मा रोग (तपेदिक) तथा पापक्षय के लिए मधु से अभिषेक करना चाहिए।
  • पंचम अध्याय को ही शतरुद्रिय कहा जाता है जो रुद्राष्टाध्यायी के समतुल्य है।

नोट: इन द्रव्यों के अभिषेक से भगवान् शिव अत्यन्त प्रसन्न होकर भक्तों की समस्त मनोकामना पूर्ण करते हैं।

Process

रुद्राभिषेक एवं शिवाराधन में होने वाले प्रयोग या विधि: –

1.  पवित्रीकरण एवं पवित्रीधारण
2. आचमन एवं प्राणायाम
3.  रक्षादीप, अधिकारार्थ प्रायश्चित सङ्कल्प
4.  गो प्रार्थना
5.  स्वस्तिवाचन
6.  प्रतिज्ञा सङ्कल्प
7.  गणेशाम्बिका पूजन -[आवाहन, प्राणप्रतिष्ठा,आसन, पाद्य, अर्घ्य,आचमन, स्नान,पञ्चामृतस्नान, शुद्धोदक वस्त्र, यज्ञोपवीत, उपवस्त्र
चन्दन, अक्षत, पुष्पमाला, दूर्वा, सिन्दूर, अबीर, धूप दीप,नैवेध, ऋतुफल, करोद्वर्तन, ताम्बूल, दक्षिणा, आरती,
पुष्पाञ्जति, प्रदक्षिणा, विशेषार्घ्य, प्रार्थना एवं समर्पण।]
8.  ब्राह्मण वरण
9.  पार्षदों का पूजन -[नन्दीश्वर-पूजन, वीरभद्र-पूजन, कार्तिकेय पूजन, कुबेर- पूजन, कीर्तिमुख पूजन, सर्प- पूजन]
10. शिव पूजन -[ध्यान, आवाहन, आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन स्नान, दुग्धस्नान, दधिस्नान, धृतस्नान, मधुस्नान,शर्करास्नान, पञ्चामृतस्नान,
गन्धोदक स्नान,शुद्धोदक स्नान,महाभिषेक,आचमन,वस्त्र,यज्ञोपवीत,उपवस्त्र,चन्दन, भस्म,अक्षत, पुष्पमाला, बिल्वपत्र,
दुर्वा, सुगन्धित द्रव्य]
11.  एकादश रुद्रपूजा
12.  एकादश शक्तिपूजा-  [आभूषण ,नानापरिमल द्रव्य, सिन्दूर, धूप, दीप, नैवेध, करोद्वर्तन, ऋतुफल , ताम्बूल, द्रव्यदक्षिणा, स्तुति]
13.  विशेषपूजा – अङ्गपूजा, गणपूजा, अष्टमूर्तिपूजा
14.  पञ्चवक्त्र पूजा 1-पश्चिमवक्त्र, 2-उत्तरवक्त्र, 3-दक्षिणवक्त्र, 4-पूर्ववक्त्र, 5-उर्ध्वमुख
15.  श्रृङ्गी या धारापात्र पूजन
16.  विनियोग तथा पूर्व षडङ्गन्यास [हृदय, सिर, शिखा, कवच, नेत्र, अस्त्र]
17.  भगवान् शिव का ध्यान – ॐ नमः शिवाय का जप
18.  अभिषेक प्रारम्भ
19.. उत्तर-षडङ्गन्यास
20.  उत्तरपूजन, आरती, पुष्पाञ्जलि
21.  परिक्रमा, प्रणाम, क्षमाप्रार्थना, दक्षिणादान, भूयसी सङ्कल्प, अभिषेक, विसर्जन, रक्षाबन्धन, तिलक, आशीर्वाद
22.  स्तोत्रपाठ

Puja Samagri

वैकुण्ठ के द्वारा दी जाने वाली पूजन सामग्री :

  • रोली,कलावा
  • सिन्दूर,लवङ्ग
  • इलाइची,सुपारी
  • हल्दी,अबीर
  • गुलाल,अभ्रक
  • गङ्गाजल,गुलाबजल
  • इत्र,शहद
  • धूपबत्ती,रुईबत्ती, रुई
  • यज्ञोपवीत,पीला सरसों
  • देशी घी,कपूर
  • माचिस,जौ
  • दोना बड़ा साइज,पञ्चमेवा
  • सफेद चन्दन,लाल चन्दन
  • अष्टगन्ध चन्दन,
  • चावल(छोटा वाला),
  • सप्तमृत्तिका
  • सप्तधान्य,सर्वोषधि
  • पञ्चरत्न, मिश्री
  • पंचगव्य गोघृत,गोमूत्र
  • चमेली तेल,कमलगट्टा
  • काला तिल,पीली सरसो
  • भस्म,चीनी

यजमान के द्वारा की जाने वाली व्यवस्था:-

  • पार्वती जी के लिए श्रृङ्गार
  • भगवान् शिव के लिए वस्त्र धोती गमछा आदि
  • गन्ने का रस :- 2 लीटर
  • पान का पत्ता :- 11 पीस
  • पुष्प विभिन्न प्रकार आधा किलो, मन्दार पुष्पमाला 5 पीस
  • पुष्पमाला, गुलाब का पुष्प आधा किलो
  • धतूर का पुष्प एवं फल :- धतूर फल एवं फूल न्यूनतम 5 पीस
  • मन्दार पुष्प
  • तुलसी और तुलसी मंजरी 1 मुठ्ठी
  • कमलपुष्प
  • बिल्वपत्र, बिल्वफल
  • पानी वाला नारियल
  • भांग
  • फलों का रस :- 500 ग्राम
  • हरी दुर्वा घास :- 1 मुठ्ठी
  • फूलों की लडी़ श्रृङ्गार के लिए
  • बड़ी साइज की परात
  • दूध :-  5 लीटर
  • दही :- 250 ग्राम
  • मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार:- 2 किलो अथवा भक्तों की संख्या के अनुसार
  • आम का पल्लव – 2
  • अखण्ड दीपक -1
  • फल :- भक्तों की संख्या केअनुसार
  • बैठने हेतु दरी,चादर,आसन
  • पीला कपड़ा सूती ,तांबा या पीतल का कलश
  • शिव लिङ्ग की व्यवस्था (यदि घर में अभिषेक हो तो)

Shopping cart

0
image/svg+xml

No products in the cart.

Continue Shopping